नई दिल्ली, 28 जून (इंडिया साइंस वायर): भारतीय ग्रीष्मकालीन मानसून हर साल आश्चर्यजनक नियमितता के साथ घटित होने वाली सबसे पुरानी वैश्विक मानसून घटनाओं में से एक है। भारतीय शोधकर्ताओं की एक टीम ने मानसून संबंधी पूर्वानुमान को और सटीक बनाने के उद्देश्य से वर्ष 2018-2020 की अवधि के दौरान घटित हुई बारह मौसमी घटनाओं के अनुकरण से जुड़ा अध्ययन किया है।
“पिछले कुछ वर्षों में भारी वर्षा की घटनाओं में वृद्धि हुई है। भारी वर्षा की घटनाओं की औसत आवृत्ति और मौसमी वर्षा के प्रतिशत में भी उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। इसलिए, मानसून के दौरान भारी वर्षा की घटनाओं का सटीक अनुकरण करना महत्वपूर्ण है,” शोधकर्ता बताते हैं ।
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मद्रास (आईआईटीएम), चेन्नई, राष्ट्रीय मध्यम अवधि मौसम पूर्वानुमान केंद्र (एनसीएमआरडब्ल्यूएफ), नोएडा और भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी) बंगलुरु से जुड़ी टीम ने हाइब्रिड डेटा एसिमिलेशन के लिए एक पैरामीटर-कैलिब्रेटेड मौसम अनुसंधान और पूर्वानुमान मॉडल पर काम किया है। शोधकर्ताओं ने इस प्रक्रिया में दो डेटा एसेमिलेशन एल्गोरिदम और मौसम अनुसंधान और पूर्वानुमान मॉडल डेटा समावेशन सिस्टम का उपयोग किया।
टीम ने पूर्व के दो अध्ययनों पर विचार किया, जिसमें संख्यात्मक मौसम भविष्यवाणी (एनडब्ल्यूपी) मॉडल में सुधार के केवल एक पहलू को संबोधित किया गया था- उस सटीकता को बढ़ाना जिसके साथ मॉडल वायुमंडलीय भौतिकी का प्रतिनिधित्व करता है। इन अध्ययनों में मॉडल पूर्वानुमान में सुधार से जुड़े दूसरे पहलू पर विचार नहीं किया जो मॉडल को प्रदान की गई प्रारंभिक स्थितियों की सटीकता में वृद्धि से संबंधित है।
“यह अध्ययन पूर्वानुमान में सुधार के लिए पैरामीटर-कैलिब्रेटेड मॉडल पर हाइब्रिड एसिमिलेशन को लागू करके उपरोक्त दोनों पहलुओं को संबोधित करता है। अध्ययन के क्रम में छह प्रयोग (12 घटनाओं में से प्रत्येक के लिए) किए गए। कुल मिलाकर, कैलिब्रेटेड मापदंडों के साथ डेटा संयोजन ने, डिफ़ॉल्ट पैरामीटर्स की तुलना में, विभिन्न चर (वेरिएबल्स) के सन्दर्भ में एक महत्वपूर्ण सुधार प्रदर्शित किया: वर्षा (18.04%), सतही हवा का तापमान (7.91%), सतही हवा का दबाव (5.90%), और 10 मीटर की तुलना में हवा की गति (27.65%),” शोधकर्ता स्पष्ट करते हैं।
मापदंडों को कैलिब्रेट करने के अलावा, किसी पूर्वानुमान मॉडल की सटीकता प्रारंभिक स्थितियों की सटीकता पर भी निर्भर करती है। प्रारंभिक स्थितियों के सटीक आकलन में सुधार के लिए उपग्रहों, रेडिओसॉन्डस , विमान द्वारा मापन जैसे अनेक स्रोतों से अवलोकन संबंधी डेटा की मदद से डेटा समावेशन का उपयोग किया जाता है।
मौसम का सटीक आकलन और पूर्वानुमान पर्यावरणीय और आर्थिक दृष्टि से अत्यधिक महत्व का है। यही कारण है कि दुनिया भर के शोधकर्ताओं द्वारा इसका अध्ययन किया जाता है। भारत में हर साल मानसून के दौरान भारी वर्षा की घटनाओं के कारण होने वाली बाढ़ औरभूस्खलनजैसी आपदाओं में जान-माल की भारी हानि होती है।
पिछले कुछ वर्षों में, भारत के पूर्वी और पश्चिमी समुद्र तटों को विनाशकारी चक्रवातों का सामना करना पड़ा है। अध्ययन के महत्व को रेखांकित करते हुए आईआईएससी के प्रोफेसर जे. श्रीनिवासन टिप्पणी करते हैं, “चक्रवात के तटों से टकराने के बाद भारी मात्रा में बरसात होती है। इस अध्ययन को विस्तारित कर इसमें चक्रवात जन्य मौसमी घटनाओं की दृष्टि से भी विचार करने की आवश्यकता है। ”
शोध टीम में संदीप चिंता, वी.एस. प्रसाद, और सी. बालाजी शामिल हैं । यह अध्ययन करंट साइंस में प्रकाशित हुआ है। इसे भारत सरकार के पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (एमओईएस) के राष्ट्रीय मानसून मिशन द्वारा समर्थित किया गया था। (इंडिया साइंस वायर)