एपी विंडो एक जन्मजात और अति दुर्लभ हृदय रोग की बीमारी है। जो 1 लाख बच्चों में से किसी एक बच्चे में देखने को मिलती है। यदि समय पर उसका इलाज न कराया जाए तो 40% बच्चों की मृत्यु 1 साल के भीतर ही हो जाती है।
सूरत: हर वर्ष 14 फरवरी के दिन लोग वेलेंटाइन डे मनाते हैं। बहुत ही कम लोग जानते हैं कि आज का दिन जन्मजात हृदय रोग जागृति दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। यह दिवस हृदय रोग के साथ जन्मे बच्चों और उनके परिवारों को समर्पित है। इसी दौरान सूरत में पहली बार डिवाइस क्लोजर पद्धति से एपी विंडो की केथलेब में माइक्रो सर्जरी की गई, जो दक्षिण गुजरात में पहली घटना है।
एक बच्चा जो श्वसनतंत्र में संक्रमण के कारण बार-बार बीमार पड़ रहा था साथ ही उसका वजन भी नहीं बढ़ रहा था। जांच करने पर पाया गया कि वह बच्चा जन्म से ही हृदय संबंधित बीमारी से पीड़ित है। जिसके तहत उसके हृदय में एक बड़ा सा छिद्र देखने को मिला। जिसे एओर्टोपाल्मोनरी (एपी) विंडो कहा जाता है। हृदय में से दो महा धामनिया निकलती हैं। जिस जिसमें से एक के द्वारा शुद्ध रक्त प्रवाहित होता है जबकि दूसरे के द्वारा अशुद्ध रक्त प्रवाहित होता है। दोनों धमनियों के बीच एक छिद्र है जिसे एपी विंडो कहते हैं। छिद्र के कारण कुछ रक्त गलत दिशा में (फेफड़े में) प्रवाहित हो जाता है। जिसकी सर्जरी डिवाइस क्लोजर की पद्धति से केथलेब में की गई।
सूरत में पहले भी ऐसे केस देखने को मिले हैं। जिसमें बच्चों का वजन काफी कम होता है अथवा एपी विंडो का छिद्र काफी बड़ा होता है। ऐसी स्थिति में ओपन हार्ट सर्जरी द्वारा उसे बंद किया जाता है। हमारे पास जो बच्चा आया था उसकी उम्र 2 वर्ष और वजन 8 किलो था। साथ ही उसके दिल के छिद्र का साइज मीडियम था। इसी कारण उस छिद्र को केथलेब में डिवाइस क्लोजर द्वारा बंद करने का निर्णय लिया गया था। दक्षिण गुजरात में पहली बार हमने सफलतापूर्वक इस प्रक्रिया को पूर्ण की। बच्चों को 3 दिन तक अस्पताल में एडमिट किया गया था और चौथे दिन उसे छुट्टी दे दी थी।
अभी तक एपी विंडो का इलाज ओपन हार्ट सर्जरी के द्वारा किया जाता था। परंतु पिछले कुछ सालों में इंडिया के कुछ हॉस्पिटलों में डिवाइस क्लोजर द्वारा एपी विंडो का इलाज किया जा रहा है।
इस बच्चे का इलाज बेबी बिट्स हार्ट सेंटर के डायरेक्टर डॉक्टर स्नेहल पटेल द्वारा किया गया। जिसमें कोकून मस्कुलर वीएसडी डिवाइस का उपयोग करके एपी विंडो को बंद किया गया। सामान्य तौर पर ओपन हार्ट सर्जरी में 4 से 5 घंटे का समय जाता है साथ ही इस प्रक्रिया में मरीज की छाती में चीरा मारकर छाती की हड्डियों को भी काटना पड़ता है। जबकि डिवाइस क्लोजर पद्धति में यह सर्जरी काश लैब में महज 1 घंटे के अंदर हो जाती है। इस पद्धति में मरीज की हड्डियों को भी काटने की जरूरत नहीं पड़ती। मरीज की जांघ में मात्र दो मिलीमीटर का एक छोटा सा छिद्र करके इस सर्जरी को सफलता पूर्वक किया गया।